लक्षण (दोहा) :-
दुइ बस्तुन में जब कहीं समता किछू लखात।
ओही समता के कथन उपता मानल जात॥
उदाहरण (दोहा) :-
चलि न सकत निज पाँव से हठ पर सदा तेयार।
जनता दल सरकार के शिशु समान व्यवहार॥
शिशु जइसन करनी करत पाइ चोख हथियार।
जनता पार्टी करत तस पाइ राज्य अधिकार॥
टुटला टाँग में काठ के सोहत जइसे जोड़।
तस जनता सरकार के राजिव कठऊ गोड़॥
मस्ती में न लियात जस हाथी से कुछ काम।
तस बी.पी. अब बइठि के करत हवें आराम॥
वीर :- गाभिन घोड़ी असमय में जब बच्चा कबहूँ देति गिराय
तस जनता सरकार बीगि के बी.पी. बच्चा गइल लड़ाय॥
जस बच्चा का साथ जेर या झार निकलि बाहर चलि जात।
तस बी.पी. का साथ एक दल बाहर आ के हवे सुहात॥
उमपेय
लक्षण (दोहा) :- जेकर वर्णन होत ऊ वर्ण्य प्रकृत उपमेय।
प्रस्तुत कथ्य विषय उहे छवो नाम से ज्ञेय॥
उपमान
लक्षण (दोहा) :- तुलना जे से होत ऊ अप्रस्तुत उपमान।
अवर्ण्य अकथ्य अप्रकृत आ विषयी कहत सुजान॥
साधारण धर्म
लक्षण (दोहा) :- क्रिया रूप गुण वस्तुके आ ओकर विस्तार।
ई साधारण धर्म सब उपमा के आधार॥
उपमा वाचक शब्द
लक्षण (दोहा) :- जेतना शब्दन के हवे समता सूचक काम।
ओ सब शब्द समूह के वाचक बाटे नाम॥
जस तस अइसन मतिन सम नाईं सरिस समान।
ई सब वाचक शब्द हऽ और अइसहीं आन॥
पूर्णोपमा
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय वाचक धर्म आ उपमान जब चारू रहे।
चतुरंगिनी उपमा उहे पूर्णोपमा कवि सब कहे॥
उदाहरण (दोहा) :-
ईश्वर जगत बनाइ के ओही में छिपि जात।
जइसे अपना बाढि़ में नदी-पाट न दिखात॥
बा माछी का लात अस पटिदारे के बात।
नींद न आवत दुहुन में एको यदि लगि जात॥
घन में चपला के चमक चमके जस उजियार।
बन में चमके ओइसहीं फूलन के तलवार॥
जवना लट का होत ना कबें तेल से भेंट।
लउकत निपट उदास जस कोरट के इस्टेट॥
पहिला बरखें बेंग सब करत अधिक हँउजार।
नेता यथा चुनाव में निज निज करत प्रचार॥
बड़हन लोगन का सँगे चमचा सदा सुहात।
क्यु का पाछे आइ के यू जइसे सटि जात॥
नेता खोवत सुयश निज बनि दिल्ली के दास।
जइसे घाम बयारि में खोवत दीप प्रकास॥
डाली डोनेशन बिना ई करिया अँगरेज।
विनय न केहु के सुनत जन समधी बिना दहेज॥
लसत लालिमा पान के करिया मुहें निसोक।
जस केहु काला महिष पर भाला दीहल भोंक॥
पेचिस का मल का सरिस समधी के बा नाज।
टकसत ना दर छोडि़ के यदि बाजा ना बाज॥
सवैया :-
केतनो गरिबाह रहे समधी तबो बाजा चले संग एक अटाला।
धनिकात त रावण ऐसन गर्व में और भी चूर रहे मतवाला।
बरियात के शो कुछ और भी ज्यादा बनौला बिना ओकरा न खेपाला।
करे आतिश जोशी के ऐसन शो धधके जस लंका में आगि के ज्वाला॥
जवना गिरि से कुदले हनुमान त ऊ गिरि शीघ्र पताल पराइल।
तवने तरे बेंचे बदे सरकार का हाथ से बस्तु जे आके छुवाइल।
तब ऊ चलि गैल तुरन्त अन्हार में दूर कहीं कहियो ना देखाइल।
बहिराइल भूमि से पानी ऊहाँ इहाँ लोग का आँखि से आँसु बहाइल॥
लुप्तोपमा
लक्षण (हरिगीतिका) :-
चतुरंग वाचक धर्म वर्ण्य अवर्ण्य में से कुछ जहाँ।
हो जाय लुप्त त कवि सभे लुप्तोपमा मानत उहाँ॥
या
उपमेय आ उपमान वाचक धर्म में से कुछ जहाँ।
हो लुप्त तब लुप्तोपमा कवि लोग मानेला उहाँ॥
दोहा :- उपमा का चतुरंग में अंग एक दो तीन।
लुप्त भइल लुप्तोपमा मानत सुकवि प्रवीन॥
(अ) एक लुप्तोपमा
उपमान लुप्तोपमा
उदाहरण (दोहा) :- अकबर नीयर अपढ़ आ तुगलक अस विद्वान।
भारत में केहु भइल ना मुसलिम शासक आन॥
तनी खड़ी मैदान में झोंटा भुवर पसारि।
मकई तोहरा तुल्य ना लौकत दूसर नारि॥
भँइसा सरिस लड़ाक आ कर्मंठ मूस समान।
माछी अइसनका हठी जीव न लौकत आन॥
बेटिहापन अस बिपति ना टी.बी. अस ना रोग।
रीति काल कवि सम न कवि मरन सरिस न वियोग॥
फल ना आम समान आ साठी सम न अनाज।
सूर्य समान न देवता पुष्पक सम न जहाज॥
भोजन बनि पटवारिये पचल भइल लेखपाल।
अइसन पेट न आन के कइलसि कबें कमाल॥
उपमा अस दोसर न बा अलंकार कठिनाइ।
जेकरा भेद प्रभेद में बुद्धिहोति गुमराह॥
पागल कुक्कुर का जहर अस ना जहर देखात।
जे से पीडि़त जन सदा पानी देखि डेरात॥
अद्भुत पशु बकरा सरिस दोसर बा न देखात।
जे लखि काल हुँडार ना भागत या मेमियात॥
बेअिहापन अस विपति ना राज रोग अस रोग।
रीतिकाल कवि अस न कवि स्वास्थ्य सरिस ना भोग॥
सवैया:- केशव सेनापित अस दोसर के कवि श्लेष विशेष बखानी।
स्नेही का बानी में जौन रवानी उ ना दोसरा में देखात रवानी।
काब्य में बुद्धि लड़ावे बदे न द्विजेश के लौकत बा केहु सानी।
भूषण ऐसन ना केहु ओ घरी हिन्दुपना के रहे अभिमानी॥
सोरठा :- खर कुवार के घाम तेवर उमस पवन बिना।
के करि पायी काम कृषक सरिस मैदान में॥
उपमेय लुप्तोपमा
उदाहरण (दोहा) :- साँप सरिस गति कुटिल आ खर सम खरतर बैन।
गिरगिट सम रंग बदलुवा शुक सम निष्ठुर नैन॥
सवैया:-
सरकार के बा टहलू अस भृत्य किसान बदे भगवान समान बा।
मिलते नोकरी बढ़े लागत जोर से जैसे अँजोर के दूज के चान बा।
नित लोभ में आगे बढ़े जस भस्मक रोग के भूखि के वेग महान बा।
छुटहा चरे में जस काशी के साँड़ अयोध्या जी के अथवा हनुमान बा।
रखे लोहा के लाम जँजीर यथा गज पागल भागल के पिलवान बा।
लगे कंघी हवे रखले अपना जस पालत सिक्ख के धर्म विधान बा।
गुनियाँ संग हो के इहो गुनियाँ जस राखत कागजी भूत पुरान बा।
नक्शा हवे हाथ में तेहू पै एकर भारी आतंक पुलीस समान बा॥
खसरा धइले बा तबो लोगवा घेरले बा ज्यों देत तकावी के दान बा।
महपातर ऐसन ई निशि वासर जोहत नित्य नया यजमान बा।
पर काम से प्यार बड़ा जइसे सबसे बढि़ के उपकारी महान बा।
केहुवे के जमीन हो पाँच कड़ी तक लेत भूदान विनोबा समान बा॥
अपना एकरा पोखरी तक ना हवे ताल त दूर के बात हवे।
कपड़ा तन पैर कर में कुछ कागज ले परताल में जात हवे।
पर भीजत ना तनिको कबहूँ जइसे कि पुरैनि के पात हवे।
पर ताल के मालिक मुख्य इहे चिरकाल से किंतु कहात हवे॥
दशकंधर का भयवा अस सूतत पाँच बरीस ले नींद मसानी।
तब रावण मातुल का अस मोहक रूप बनाइ के मोहत प्रानी।
पुनि दानी हो कर्ण समान घरे-घरे घूमि के बाँटत दान जबानी।
छिति क्षेत्र के छोडि़ के अंत में देव समान बसें सरगे रजधानी॥
कवित्त :- क्षेत्रन के जोति के आ बो के ऊ रक्षा करत
पोत पानी खाद देत केवल किसान बा।
क्षेत्रफल किंतु सब राखत बा व्यक्ति उहे
बेचत इन्तखाप में जे सौदा समान बा।
ठानि ठानि दाम मनमाना लेत गाहक से
और बेंचि देत निज धर्म आ ईमान बा।
एके हाथ लूगा में बान्हत सजी क्षेत्रफल
मानो जादूगर के ऊ काटि लेत कान बा॥
वाचक लुप्तोपमा
उदाहरण (दोहा) :-
धनखर झोंटा झारि के मकई नारि कुँवारि।
खड़ी सुखावति खेत में निर्जन् जग बिचारि॥
राजनीति बन में बसत मन में भरल गुमान।
निजदल द्विप दारन कुशल सी.सी. सिंह बलवान॥
भखि बृक पटवारीन के संख्या बड़ी विशाल।
बाहर बिगले पेट से सब लोवा लेखपाल॥
चकबंदी आँधी बड़ी कृषक खेत खरपात।
उधिया के कहवाँ गिरी ई ना जानल जात॥
बिनु गोसयाँ के भँइसि बा दीन कृषक के खेत।
पाड़ा चक पैदा करी लामें ऊसर रेत॥
बैरी मृग गन पर करें बाघिनि फूलन वार।
सहयोगी शिशु पर करे सदा यथोचित प्यार॥
धर्म लुप्तोपमा
उदाहरण (दोहा):-
फूलन बाघिनि अस लसे चीता अस मलखान।
रहले देवी सिह कबें सचमुच सिंह समान॥
फूलन बा सरघा सरिस आ बन शुनी समान।
करिया नागिन सरिस आ असि जस बिना मियान ॥
नृप सम बिडियो राज्य सम खेत्र बलाकिस्तान।
राजगुरू सम नेतृगुण मंत्री सरिस प्रधान॥
ऊँट सरिस पगु और गति हाथी ऐसन नैन।
वायस सरिस दयालुता वरन विमलता वैन॥
कोइला अइसन ओठ आ रसना गेरु समान।
नाबदान अस नाक आ दाँत हरिद्रा खान॥
राजा सम अब बीडियो प्रजा समान किसान।
नेता राज गुरू सरिस मंत्री सरिस प्रधान॥
सिनिमा जालि समान बा चित्रे चाउर दान।
दर्शक पंछी सरिस आ पइसा प्रान समान॥
सवैया :- ऊँट का गोड़ समान हो गोड़ आ चालियो ऊँट की चालि से गाजे
दाँत के रंग हो हर्दी का रंग सा हाथी की आँखि सी आँखियो राजे
काग का रंग सा देहि के रंग हो काग की बोली सी बोली बिराजे
भालु का नोह सा नोह लसे सिर सेनुर गोजर ऐसन छाजे।
( ब ) द्विलुप्तोपमा
वाचकोपमान लुप्तोपमा
दोहा :- करि परिवार नियोजनऽ दुइ तिन लरिका गोद।
खड़ी खेलावत गोद में मकई मानति मोद॥
वाचक धर्मलुप्तोपमा और सम अभेद रूपक में अंतर
लक्षण (दोहा) :- उपमा में उपमान आ रूपक में उपमेय।
पहिले राखल उचित बा राम बहोरी ध्येय॥
वाचक धर्म लुप्तोपमा
उदाहरण (दोहा) :-
गणपति वाहन मूस सब गौ माता निलगाय।
रामदूत बानर सभे खात खेत के आय॥
राजा बिडियो राज्य सब क्षेत्र बलाकिस्तान।
राज गुरू नेता तथा मंत्री ग्राम प्रधान॥
बन बाघिनी फूलन जहाँ चीता श्री मलखान।
सिंह देबिये सिंह कबे राबिनहुड जग जान॥
नीम अफीम चिरायता आ हुरहुर के पात।
तुमही लौकी तूतिया रउरा मुँह के बात॥
जालि सिनेमा बा तहाँ चारा चित्र ललाम।
खग दर्शक बाटे तहाँ प्रान पास के दाम॥
चौपाई :- फूलन देवी सरकस बागी। कानन बाला आ गृह त्यागी॥
करिया बदरी आ घन काला। भीषण आँधी पावक ज्वाला॥
लूह जेठ के मेघिया पाला। मिर्च बहुत अति गरम मसाला॥
सम अभेद रूपक
उदाहरण (हरिगीतिका) :-
जब मूल गणपति वाहने निलगाय गो माता सही।
हनुमान रघुपति दूत सब कृषि आय दुइ ऋण दुइ रही॥
दोहा :- बिडियो राजा साहब ब्लाक सक्षेत्र जमीन।
नेता राज गुरू तथा मुखिया सचिव प्रवीन॥
फूलन देबी बाघिनी आ मलखान हुँड़ार।
आ देबी सिंह सिंह तब मुख्य दस्यु सरदार॥
मृग बैरी लखि के करे बाघिनि फूलन वार।
शिशु सहयोगी पर करे सदा हृदय से प्यार॥
हरिगीतिका :-
दुकान न्यायालय दलाल वकील लोग देखात बा।
न्याय गाँहक मुद्दई का न्याय महँग किनात बा॥
धर्मोपमेय लुप्तोपमा
उदाहरण (सवैया) :-
ऊँट का गोड़ बड़ा-बड़ा चालियो ऊँट की चालि से छाजे।
दाँतन के रंग हर्दी का रंग सा हाथी की आँखि सी आँखियो भाजे।
काग का रंग सा देहि के रंग आ काग की बोली सी बोली बिराजे।
भालु का नोह सा नोह लसे सिर सेनुर गोजर ऐसन गाजे॥
सोरठा :-
आगी अइसन घाम तेपर उमस कुवार के।
घोर युद्ध कृषि काम के विजयी तुँह कृषक सम॥
दोहा :- कोइला अइसन ओठ आ रसना गेरू समान।
नाबदान अस नाक आ मूस कान सम कान॥
धर्मोपमान लुप्तोपमा
उदाहरण (दोहा) :-
पहलवान गामा सरिस नेता तिलक समान।
साँगा अइसन वीर ना मिली खोजले आन॥
मालवीय का हृदय अस हृदय न मिली विशाल।
बच्चन अइसन कवि न बा अब केहु मालामाल॥
ना गुरू जय गुरूदेव अस ज्ञानेश्वर अस संत।
मठाधीश रजनीश अस केहु न भइल भगवन्त॥
वाचकोपमेय लुप्तोपमा
उदाहरण (दोहा) :-
कवनों रितु में फूल ना होखे तनिक उदास।
आजीवन जेकर सु-छबि गवले तुलसी दास॥
नील कमल बिनु बारि के सरसल सरयू पास।
सात फूल तेहि में खिलल खिलले तुलसी दास॥
(स) त्रिलुप्तोपमा
वाचक धर्मोपमान लुप्तोपमा
उदाहरण (दोहा) :-
रामचंद्र सम देवता या भूपति ना आन।
ना केहु ओइसन तार केना केहु कृपा निधान॥
मंत्री राकस भालु कपि केकर सखा मलाह?
पूज्य पिता सम गिद्ध आ भक्त काग सन्ताह॥
वाचक धर्मोपमेय लुप्तोपमा (रूपकातिशयोक्ति )
उदाहरण (दोहा) :-
जोड़ा खंजन जेठ में मिलल रेल में जात।
दूनूँ का बीचे रहे तिल के फूल देखात॥
छन्द :-
लूगा से तनि तोपल ढ़ाकल दुइ लघु ढेंकुल खम्भ देखाला।
बरहा बाँस रहत ना ओमें ना धरती में गाड़ल जाला।
आधा बित्ता चाकर लगभग सोरह आँगुर लम्बा गोड़ा।
अइसन दुइ गोड़ा पर सीधा खड़ा रहत खम्भा के जोड़ा।
गोड़न के अगिला भाग पाँच हिस्सा में खढि़या बाँटल बा।
प्रत्येक भाग का सिर पर उज्जर टिकुली एगो साटल बा।
अचर हवे ना सचर हवे ऊ यदि चाहे तऽ दउरि सकेला।
दूनूँ में ऐसन संहति बा रहे न कवनों अलग अकेला॥
पारापारी भाँजा माफिक दूनूँ आपन काम करेला।
दूनूँ खम्हा पर अइसनका बाकस एगो देखि परेला।
जेमें कई मशीन निरन्तर बिनु चालक के काम करेला।
भाँति भाँति के इन्धन ओमें रहि रहि बारम्बार परेला॥
आगी कबे बुताय न ओमें थोरे ढ़ेर सर्वदा जरेला।
टरे न इन्धन के बेरा मालिक मशीन के सदा डरेला।
बाकस का दूनूँ कगरी दुइ लटकल साँप करें रखवारी।
दूनूँ साँप पाँच फन वाला दूनूँ साँप पाँच मणि धारी॥
बाकस का ऊपर बीचे में खूँटा एक हलावल बाटे।
जेपर भंटा का खेते के हाँड़ी ले अउन्हावल बाटे।
ओ हाँड़ी में सात छेद जे हाँड़ी के सोभा सरसावे।
तरह-तरह के मल भीतर के जेहि में से बहि बाहर आवे॥
ओ सातों में बड़का एगो दिन में प्राय: कमें चुपाला।
सुति गइला पर दुइगो छोटका कुक्कुर नियर कबें गुरनाला।
ब्रह्मा जी के सबसे उत्तम रचना ईहे मानल जाला।
बड़ा भागि से सुर-दुर्लभ ई जगह जीवन का कबे भेटाला॥
प्रतिवस्तूपमा अलंकार
लक्षण (दोहा) :- एक अर्थ के शब्द दुइ एके धर्म बखान।
ऊ हऽ प्रतिवस्तूपमा वाचक रहत जहाँ न॥
ताटंक छंद :-
एक अर्थ के वाचक दुइ गो भिन्न शब्द जब आवेला।
उपमेय और उपमान दुओ के धर्म समान बतावेला।
उपमा वाचक शब्द यथा इव जिमि तिमि जहाँ न आवेला।
तब प्रतिवस्तूपमा नाम के अलंकार मन भावेला॥
वीर :- समता सूचक शब्द हटा के जहवाँ कथ्य अकथ्य धरात।
एके साँचा के ढारल अस दूनूँ वाक्य समान बुझात।
एकार्थक दुइ भिन्न शब्द से धर्म दुओ के एक कहात।
उपमा के प्रतिवस्तु नाम के उहवाँ एगो भेद सुहात॥
उदाहरण (दोहा) :-
रवि शशि पर गरहन लगे तारा गण बचि जात।
देबे खातिर आय कर धनिक लोग पकड़ात॥
बालक बनिया से बनत बा मनसायन गेह।
स्वास्थ्य और विद्या करत चित्ताकर्षक देह॥
सींग पोंछि से बर्द के जानल जाला जाति।
मोंछ मूँड़ी से मर्द के पौरुष बा प्रकटाति॥
पढुवा लोगन का लगे अब न दबात दिखात।
लरिकन हित ना हाट में धोती पावल जात।
बिनु सकोच गन्दा करत जहाँ सुर्तिहा जात।
बिस्तर छिलबिल करत ना शिशु नवजात लजात॥
गावत ऋषि मुनि कवि कहत बरनत वेद पुरान।
प्रवचन राम चरित्र पर करत भक्त विद्वान॥
देखि राति के आगमन कमल पुण्य कुम्हिलात।
आरक्षण लखि मन सुमन द्विजगण के मुरझात॥
बेटिहा के बेटहा करे निर्धन पकडि नकेल।
तेली कहों छोडि़ दी तिल में तनिको तेल॥
रामचन्द्र के धर्ममय रथ रहि गइल बेकार।
धर्म तहाँ का करि सकी जहाँ लौह हथियार॥
गान्धी टोप न पहिरले गांधी एको बार।
बिनु मेम्बर बनले रखें कांग्रेस पर अधिकार॥
जमींदार का जगह पर राजत कुर्क अमीन।
अब धोती का जगह पर लुँगी बा आसीन।
बाल चंद्र में रहत ना तनिको करिया भाग।
बालक के सब बालपन बीति जात बेदाग॥
जस बन में तस जेल में फूलन भजति उमंग।
तरुणीतन या अग्नि पर स्वर्ण न बदलत रंग॥
मिलत न बैल गरीब का लागत दाम कुठाह।
दुर्लभ बड़का लोग का होइ गइल हरवाह॥
परत बाजड़ा पर कबे सूखा के न प्रभाव।
धनाभाव से ना कबे बदलत सुजन स्वभाव॥
सवैया :-
कुछ ज्योतिष के जनले जजमानी के वृत्ति बड़ा चटकार हो जात बा।
अंगरेजी के शब्द मिला-मिला बोलले हिंदी बड़ा रंगदार हो जात बा।
श्रम से जी चोरावेला से देहिया बनि के सुकवार बेकार हो जात बा।
अति तेज रहे हथियार तबो धइले-धइले मुरदार हो जात बा॥
बर का कनियाँ मिलि जात संगे समधी का दहेज कई मिलि जात बा।
डूबत दार्हीबा पेटुन के जब चीनी दही आपुड़ी परोसात बा।
हीक पुजे नचदेखुवा के जब नारि के वेष में मर्द देखात बा।
देबे में बा बेटिहा उबियात तऽ पावे बदे बेटहा अगुतात बा॥
छंद :- मुसलिम से हिन्दू लोगन के चिरुकी अलगे बिलगावेला।
लेकिन जनेव हिन्दू-हिन्दू में भेदभाव उपजावेला॥
कुण्डलिया :-
खमत भइल रजवाड़ सब गइल प्रथा बेगार।
हटल राज अँगरेज के उसरल छूत बजार।
उसरल छूत बजार भेद छोटका बड़का के।
पराधीनता भागि चलल अति दूर परा के।
सस्ती कहति न टिकवि इहाँ हम खाति कसम बा।
पंजाइति में उच्च जाति के रहल खतम बा॥
वीर :- लछुमन जी का जीये खातिर रहे न जब कुछ अन्य उपाय।
सजिवन बूटी उहाँ कूँचि के उनके दीहल गइल पियाय॥
* * * *
योगी का योग साधना में बाहर के जगत बिसरि जाला।
कलकलिहा का खजुवावे का बेरा सब चिंता टरि जाला॥
योगी के मन होके एकाग्र अन्तर में सदा समा जाला।
कलकलिहा जन के हाथ दुओ धोती का भीतर आ जाला॥
योगी हो जाला सफल और भेटेला ब्रह्मानन्द उहाँ।
कलकलिहा के होला पूर्णकाम पा जाला परमानन्द उहाँ॥
शुद्ध प्रतिबस्तूपमा
उदाहरण (दोहा) :- बेटिहा के बेटहा हरत सब धन पकडि़ नकेल।
तेली ना छोड़तकबे तिल में तनिको तेल॥
मालाकार प्रतिबस्तूपमा
सवैया :-
वर का कनियाँ मिल जाति बियाह में आ समधी का दहेज भेंटाला।
बरियात बा पावत दावत दीर्ह आ पुड़ी सब खाके अघाला।
नचदेखुवा प्राप्त करें मजा मुफ्त में देखत नाच हिया हरषाला।
बेटिहा का हरानिये हाथ लगे हर एक के हुक्म जोगावत जाला॥
श्लेषोपमा अलंकार
लक्षण (दोहा) :-
श्लिष्ट शब्द द्वारा जहाँ धर्म समान कहात।
अलंकार श्लेषोपमा उहवाँ मानल जात॥
चौपई :- उपमा में जब श्लेष दिखाय। तब ऊ श्लेषोपमा कहाय॥
उदाहरण (दोहा) :-
करत सदा मंगल रहत गणपति सम यमराज।
दुओ चढ़ावत पालकी साजल शोभा साज॥
बाजा बजवावत संगे लगा बड़ी बरियात।
दावत दिलवावत सघन जस जेकर अवकात॥
साधू चलत स्वधर्म पर संतत दुष्ट समान।
जिनका हित खातिर कबे देह धरत भगवान॥
रहे सतर्क सुआर सम संतति वाला नारि।
बिगड़े देत न पाक के निज कर्तव्य बिचारि॥
नदी बाढि़ जल अमृत सम केवल अपने आप।
प्राणिन के अक्षय करत हरत सकल सन्ताप॥
कुलवन्ती नारी सरिस सदा सतर्क सुआर॥
अतिशय उत्तम कोटि के पाक करत तैयार॥
भोज ठाटियल दुहुन में दीहल जात समान।
बेटहा महपातर सरिस ठानि-ठानि ले दान॥
उपरोहितहा विप्र सब लामर नियर लखात।
जे पर घर पर जाई के पृथुक आन के खात॥
उत पति थिति लय भव सरिस ना बरजे का योग।
बात पित्त कफ शूल लय जेसे पीडि़त लोग॥
कहत लोग सेवक सरिस नारि जाति आ छात्र।
स्वामी पति गुरू वश निवसि बनत प्रशंसा पात्र॥
दुर्जन चलत स्वधर्म पर सचमुच संत समान।
जेकरा खातिर अवतरित होत रहत भगवान॥
सन्त बन्धु शुचि सन्त सम पूजा पावत जात।
जेकर परहित सन्तपन जग में बा विख्यात॥
राउर मेहर बानिये जन मन कृषि बरसात।
घर वालन के किंतु बा मन मदार जरि जात॥
इन्द्रधनुष आ पुलिस के हवे विधान समान।
दूनूँ दर्शन देत जब खतम होत तूफान॥
चौका में आ गेह में सदा सम्हारि सम्हारि।
अतिशय उत्तम कोटि के पाक बनावति नारि॥
अनल सुधा का माथ परदेत कबे यदि हाथ।
प्राणिन के अक्षय करत धूमधाम का साथ ॥
पूर्ण करत सब कामना सब दिन बद्रीनाथ ।
किन्तु केदारे नाथ पर काम करत ना माथ ॥
कन्दुक किरहा कुकुर अस धावत रहत निरास।
दूर भगावत मारि के जात जेकरे पास॥
शोभत मानस उभय बा सचमुच गगन समान।
बिलसत हँस जहाँ सदा पावन विमल महान॥
पंछी अइसन पंच सब सोभत सदा सपक्ष।
चरी चुरी कइसे भला यदि होई निष्पक्ष॥
निबल बूढ़ पशु का सरिस संस्कृत के विद्वान।
माघ मेघ में दुहुन के जीवन के अवसान॥
कुर्कमीन का सरिस भी हवे हुंडार लखात।
गाँव-गाँव में घूमि के पोत लेइ के जात ॥
सवैया :-
सब हिन्दुन में सरिता अति आदर पावति मातु समान कहावति।
उर पै सदा पोत के राखि खेलावति ना पल एक कबे बिसरावति।
जब आवति जोर से आँधी कँपावति पोत के आ डवाँडोल बनावति।
जल का तल अंचल में सरिता तब दाबि के गोद में पोत छिपावति॥
चढि़ के चले आन का कान्ह पै पाक निजी पगु सेचले जानत नाहीं।
लखि आन के बस्तु सदा ललचात तथा छरियात त मानत नाहीं।
नजदीक में जे रहे ओके बेचैन रखे केहुवे के गदानत नाहीं।
हवे ऐसन चंचल पाक स्वभाव कि शान्ति कबे उर आनत नाहीं॥
हठ ठानी त बात न मानी कबे केहुवे केतनो समुझाइ के हारी।
हथिवावे के आन के बस्तु कबे छरिया के देखावे लगी बरियारी।
जब हारीत गारीब की अथवा केहू चाचा के आरत हो के पुकारी।
जब पाक के बुद्धि बिपाक रहे तब न्याय के बात ऊ खाक बिचारी॥
छंद :- एक बार शास्त्री का साथे पैदल डेग बढ़ौनी हम।
आ ज्यादे तेज चले खातिर उनका के कुछ अगुतौनी हम।
'' हम कहनी कि हमरे समान तनि फरहर डेग बढ़ायीं अब।
ना तऽ हमहीं आगे चलि के तनि आपन चालि देखायीं अब। ''
शास्त्री कहले '' रउरा चाहबि यदि आपन चालि देखावे के।
तब तऽ हमरा जूता जरूर हाथे में परी उठावे के॥ ''
अनन्वयोपमा अलंकार
लक्षण (दोहा) :- उपमेये उपमान बनि जहाँ चलावे काम।
मिलत अन्य उपमान ना तहाँ अनन्वय नाम॥
या
उपमेये उपमान निज बनि के जहाँ सुहात।
तहाँ अनन्वय नाम के उपमा मानल जात॥
उदाहरण (दोहा) :-
टीचर टीचर अस रही छात्र छात्र का भाँति।
तबे रही इसकूल में अनुशासन आ शान्ति॥
नेता नेता अस रही हाकिम हाकिम तुल्य।
लोकतंत्र में सुख तबे सबका मिली अमूल्य॥
फूलन ऐसन फूलने कइली अइसन काम।
कि दुइ बरिसे में जगत जानल उनके नाम।
कलि में पृथ्वीराज अस भइले पृथ्वीराज।
लक्ष्य बेध अदृश्य जे कइले सुनि आवाज॥
सवैया :-
पुतली अस दस्यु रहे पुतली केहुवे ओकरा समतूल व बाटे।
त बेवाइ फाटवे में रेह का ऐसन रेह बा दोसर धूल न बाटे।
तुलसी दल सा तुलसी दल फ्ल्यू जर नाशक बा कपसूल न बाटे।
जग पालिका अफ्सर गिद्ध या गिद्ध बा दोसर ओ समतूल न बाटे॥
कवित्त :- साँप के बधल जस भारी भूल बाटे तस
साँपे के बधल बाटे दोसर न भूल बा।
बानर समान बैरी बानरे किसान के बा
अन्य पशु ओतना ना संकट के मूल बा।
सुर्तिहा समान गन्दा सुर्तिहे भेंटाई जे के
थूके के सहूर सभ्यता का प्रतिकूलबा।
बरई सोनार सम बरई सोनारे दुइ।
बाटे फजूल केहु दोसर ना फजूल बा॥
ललितोपमा अलंकार
लक्षण (दोहा) :- खुलि के बात कहात ना प्रचलित उपमा लाय।
अन्य शब्द वाचक बने त ललितोपमा कहाय।
या
प्रचलति वाचक शब्द तजि अन्य शब्द कुछ लाय।
कइल जाय तुलना उहे ललितोपमा कहाय॥
उदाहरण (दोहा) :-
हठि के मिल बन्द करावत ऊ करें ताला का ई इसकूल हवाले।
चिट आन के ले के ऊ जीते चुनाव ई ले चिट आन के पास कहाले।
रजधानी में ऊ चलि जाले कमाये त चम्बल घाटी में ईहो कमाले।
करें एक ही भाँति के काम दुओ जने नाम से नेता आ छात्र कहाले॥
लखि जेकर न्याय प्रवीणता लाजन ही गडि़ जात बड़े-बड़े काजी।
रहिते यदि गांधी महात्मा तऽ सिखिते उनका से गरीब नवाजी।
अपना बढ़ती से जे औरंग के दिहले इरिखा से जरा ले जरा जी।
अपना छलिया सब शत्रुन के छहि खेह खियौलनि खूब शिवाजी॥
अब ध्यान सुरक्षा पै जौन दियात बा इन्दिरा का जियते ऊ दियाइत।
तब हत्या न होइत इन्दिरा के मुवला पर वैद्य बुलाकेन आइत।
घरवा जरि गैला का बाद से आगि बुतावे बदे न इनार खनाइत।
बहि गैला पै खेत के पानी सजी कसि के मजबूत न मेड़ बन्हाइत॥
पकि गैला पै खेत के बालि न खेत में यूरिया खाद मंगा के छिटाइत।
धन चोरी हो गैला का बाद न कीमती ताला अलीगढ़ वाला किनाइत।
भइला पर जब्त जमानत ना मतदाता में कम्बल कोट बँटाइत।
जल पी के न जाति जोहाइत आ बितला पर जाड़ रजाई सियाइत॥
खइला बिनु मू गइला पर ना महपातर घीव पियावल जाइत।
जियते लतियावल जाइत जे मुवला पर लाश न कान्हें ढोवाइत।
जियते न इनार के पानी दे के मुवला पै गंगाजल खोजि के आइत।
जियते जेकरा टुटही तरई मुवले दुइ खाट न दान दियाइत॥
ऊ निज सर्किल के सुधिलेत त ई निज खेत के नित्य निहारें।
ऊ निज कान्हें बनूखि रखें सदा ई कर के न कुदारि बिसारें।
ऊ न घुसें पर सर्किल में इहो आन का खेत में डेग न डारें।
रक्षक ऊ जन के कृषि के ई पुलीस किसान एके अनुहारें॥
रहे देत न सर्किल में कबे चोर ऊ खेत से इ कतवार निकारें।
कबे धूरि में जेंवर ऊ बरि देत ई धूरि के जेवर देह पै डारें।
श्रम कार्य करे में पुलीस किसान परस्पर एक से एक न हारें।
उनके बदली कपतान करें इनके भगवान जहान से टारें॥
अति दूर रहे बदे आलस से सुकिसान पुलिस दुओ ब्रत धारें।
कबे-कबे जाके दुओ जने रातिओं में निज क्षेत्र के चक्कर मारें।
भले आदमी थाना से दूर रहे बड़का न किसान का बैठें किनारे।
करें लीला पुलीस किसान के और किसान पुलीस के लीला सँवारे॥
पितु और पितामहजे के स्वराज का प्राप्ति में जान के बाजी लगावल।
अति संकट में जे स्वयं दुरुगा बनि के निज देश के युद्ध जितावल।
अपना बल बुद्धि से देश विदेश में जे निज देश के मान बढ़ावल।
चिरजीवी बने बदे भूल से खा कर के विष आपन जान गँवावल।
सुकृती बनि जाये का मोह में आपन लोक तथा परलोक नसावल ॥
जेकरा संगे दूर ले धावे में होइ लगा सकी केवल कूति या ताजी।
पहरु जन चारि से चाटो दियाइ के धूल चटाइ के भाजी बचा जी।
लखि शत्रु पुलीस के युद्धकला जेकरा मुख पै हँसी आ के बिराजी।
मुनि के मन फूलन बा पवले बल में पर बाघ से मारती बाजी॥
अलंकार लिखे के प्रयास हमार ई फोरे के भार अकेल चना बा।
हम बानीं भुलात ना राह मिले बन भेद प्रभेद के घोर घना बा।
तवनों पर बालू के भीति उठावे के चाह बड़ा मन में अपना बा।
त कबे कबे बाटे बुझात कि चाह ई चौधुरी सी. सिंह के सपना बा॥
देहिया बलवान रहे जहिया तहिया रुपया कई लाख कमैंनीं।
पुलीस के और वकीलन के सगरे हम किंतु लुटावत गैनीं।
करनी पहिली परनी मन तऽहम काशी प्रयाग में जा के नहैनीं।
कुछ हाथ में ना बदनामिये साथ में बाँचल बा खटिया जब धैनीं॥
दोहा :- फूलन से मानत हवे चारू चिरई हारि।
कोयल खंजन हंस शुक आपन दशा निहारि॥
कवित्त :-
शिव का शरीर में हजार फन वास करें
पुलिस भी हजार फन वाला कहात बा।
धरती न छूवें छवें हवा लात शिवजी के
पुलिस का हाथे में राखल हवालात बा।
भाँग या धतूर गाँजा और भी अनेक विष
पा के गाँजा भाँग मने बहुते धधात बा।
शिव जी के कब्जा कइलाश पर बाटे उहाँ
पुलिसो के कब्जा कइ लाश पै हो जात बा।
दाह पै सती का शिव यज्ञ के विध्वंस कैले
इहो सती भैला पर मचावत उत्पात बा।
देवता समेत उहाँ दक्ष के पिटाई भैल
इहाँ घर सती के आ गाँव भी पिटात बा।
शिव के ईशान नाम राजे एक कोने इहाँ
पुलिस के ई शान चारू ओर विख्यात बा।
उग्र रुद्र भीम तीनू शिव जी के नाम इहाँ
पुलिस का साथ में विश्लेषण सुहात बा।
शिव के बरात देखि लरिका डेरैले उहाँ
पुलिस दल देखि इहाँ के ना लुकात बा।
पूजा जब पावेले त शिवजी प्रसन्न होले
पूजा पा गैला पर पुलिस भी दयात बा।
वर्दी बा सवारी उहाँ वेषधारी इहाँ
शिव के अनुकारी पुलिस दिनरात बा।
रसनोपमा अलंकार
लक्षण (दोहा) :- उपमाने उपमेय बनि आवत बारम्बार।
अलंकार रसनोपमा करत उहे तैयार॥
या
पहिले रहत अकथ्य जे उहे कथ्य बनि जात।
अस सींकरि कुछ कडि़न के रसनोपमा कहात॥
उदाहरण (कवित्त) :-
खूँटी ऊँखि कैसे बा बवाल होत फागुन में
जैसे बे छपैले कबिताई भैल भार बा।
कैसे बे छपैले कविताई भैल भार बाटे
लड़की सेयान जैसे घर में कुँवार बा।
लड़की सेयान कैसे घर में कुँवार बाटे
बी.ए. पास बेटा जैसे बैठल बा।
बी.ए. पास बेटा कैसे बेकार बाटे
मुर्दा के जैसे केहु ना उठावनिहार बा॥
भारत के जनसंख्या कौनेड़ा बढ़त बाटे
जैसे सब सौदा के दाम बढ़ल जात बा।
कैसे सजी सौदा के दाम बढ़ल जात बाटे
जैसे सुरसा मुँह बढ़ल कहात था।
कैसे सुरसा मुँह बढ़ल कहात बाटे
जैसे डैग श्रीपति के बढ़ल सुनात बा।
कैसे डैग श्रीपति के बढ़ल सुनात बाटे
जैसे बढ़न्ती मूस मच्छर के देखात बा॥
कैसे रुपयही नोट बीच सौ के नोट बाटे
जैसे छोट डोंगिन का बीच अग्निबोट बा।
कैसे छोड़ डोंगिन का बीच अग्नि बोट बाटे
जैसे सब कोटन का बीच हाई कोट बा।
कैसे सब कोटन का बीच हाई कोट बाटे
जैसे हथियारन में बन के बिस्फोट बा।
जैसे हथियारन में बन के बिस्फोट बाटे
जैसे कि अन्य भोज बीच सजन गोट बा॥
दोहा :- बपु सम बल सरिस कबा बिक्रम फूलन तोर।
विक्रम सम तव विरुद बा व्यापक चारू ओर॥
उपमेयोपमा अलंकार
लक्षण (दोहा) :- कथ्य अकथ्य करें जहाँ बदलि परस्पर काम।
अन्य अपेक्षित हो न तब उपमेयोपमा नाम॥
या
वर्ण्य अवर्ण्य परस्परऽ करें बदलि के काम।
ओके उपमेयोपमा कवि सब राखत नाम॥
उदाहरण (सवैया) :-
चुनाव बा वैतरणी समान आ बैतरणी भी चुनाव समान बा।
त कम्बल दान सा बाछी के दान बा बाछी के दान सा कम्बल दा बा।
प्रचारक सा महापात्र जहाँ महापात्र प्रचारक तुल्य निछान बा।
प्रत्याशी बा प्रेत प्रत्याशी सा दूनूँ के सदा सूखले प्रान बा॥
दिखे पोलिंग बूथ मसान समान सा पोलिंग बूथ बुझाला।
सब वोट विपक्षी चिता सी सजे चिता ऐसन वोट विपक्षी सजाला।
ममता सी बहे सरिता ममता सी बहे जहाँ लोग नहाला।
मतदान दियात ति लांजलि सा मतदान दियाला॥
जग व्योम सा बा जग दूनूँ में राज्य का प्राप्ति के तुल्य विधान बा।
त चुनाव सा तीर्थ बा तीर्थ चुनाव सा दूनूँ में दान के पुण्य महान बा।
त असेम्बली भौन बा स्वर्ग समान आ स्वर्ग असेम्बली भौन समान बा।
इसपीकर इन्द्र सा इंद्र समान इहाँ इसपीकर के बड़ा मान बा॥
मालोपमा अलंकार
लक्षण (दोहा) :- जहाँ एक उपमेय के हों अनेक उपमान।
अलंकार मालोपमा के ईहे पहिचान॥
एक धर्मा मालोपमा
लक्षण (दोहा) :- जहाँ एक उपमेय के हों अनेक उपमान।
लेकिन सब उपमान के होखे धर्म समान॥
एक धर्मा मालोपमा ओके मानल जात।
आ समान धर्मा उहे मालोपमा कहात॥
उदाहरण (कवित्त) :-
घास जिमि सीति पर मूस जिमि भीति पर
कुत्ता समेत कँजड़ जैसे सियार पर।
मीआँ जस बाजा पर लोकतंत्र राजा पर
आ पुलीस गाँजा का तस्कर व्यापार पर।
नदी ज्यों अड़ार पर लाठी ज्यों कपार पर
ग्राम गान्धी नेता ज्यों योग्य थानेदार पर।
खुरुपी ज्यों खेतन का खर कतवार पर
आ नई कविताई बा तैसे अलंकार पर॥
बाँझी आ अकास बौंरि जीयें ज्यों गाछ पर आ
धान पान खीरा ज्यों पानी का सुपास पर।
नेता भिन्नबाद पर माछी ज्यों मवाद पर
मच्छर के दल बरसाती कंजास पर।
विद्या अभ्यास पर घर शिलान्यास पर
जीये बेकारी सतरंज और तास पर।
घोड़ा ज्यों घास पर बीडियो त्यों विकास पर
ज्यों पण्डा जनता का अन्ध विश्वास पर॥
सवैया :-
बध का बेरिया बलि का पसु के जस नीमन वस्तु खियावल जाला।
जइसे केहु के खिया मादक बस्तु सुबस्तु ओके हथियावल जाला।
जइसे कुछ देके अँकोर सजी दुधवा पसु के ठोपियावल जाला॥
तइसे बेटिहा के खिया के भली तरे तीलक में डेकरावल जाला॥
सार :-
पान पीक करिया जन का मुख अइसन नीक सुहाला।
जइसे करिया भँइसा पर हो भोंकल भोथर भाला॥
या कोइला खदान में जइसे लउके छोट अँगारा।
अथवा नील गगन में चमके जइसे मंगल तारा॥
या जइसे मोटर का पाछे बत्ती लाल बराला।
या करिया गड़ही में जइसे ललका कमल फुलाला॥
भिन्नधर्मा मालोपमा या उल्लेख
लक्षण (दोहा) :-
जहाँ एक उपमेय के होत कई उपमान।
लेकिन सब उपमान के धर्म न होत समान॥
भिन्नधर्मा मालोपमा ओके मानल जात।
असम धर्म मालोपमा बाटे उहे कहात॥
उदाहरण (सवैया) :-
हम दोसरा का देखला में दुकाहें दों भारी उजड्ढ सँवाग हँई।
अपना मन में तऽसही सुविचारित खालिस्तान के माँग हईं।
केहु बूझत तुच्छ मनो हम गोजर के एगो टूटल टाँग हईं।
केहु बूझत बा धड़ में अपना जोरले केहु क उत्तमांग हईं॥
हम जाति सभा के सुझाव हईं मुड़वावल मोंछि के ताव हईं।
हम देखे में सन्त सुभाव हईं कमुनिस्ट के अन्तर भाव हईं।
घर में हम सैनि के घाव हईं घर बाहर चूकल दाव हईं।
सहता हम ऊँखि के भाव हईं हम हारल चार चुनाव हईं।
बढि़ जाईं जहाँ चउका में तहाँ हम कोसी नदी के कटाव हईं।
शोसलिस्ट के हीन प्रभाव हईं जनता दल के बिखराव हईं।
बड़ा चाव से पारित हो कर के परले रहे ऊ प्रस्ताव हईं।
करिया गुड़ के रसियाव कहीं कहीं मानल जात पोलाव हईं॥
अति काहिल के हम चाव हई कमजोर के कुम्भ चढ़ाव हईं।
फल खाति र सेमर फूल जे सेवले ओ शुक्र के पछताव हईं।
जल के जहाँ लेश न बालुवे शेष विशेष उहे दरियाव हईं।
मरु में जल के छिरकाव हईं चकबन्दी में के सद्भाव हईं।
हम के लखि खेत में सोहत लोग मुझे कि मनो गिरहस्त हईं।
मड़ई बिच बास बिलोकि बुझे जग से मनो पूरा विरक्त हुई।
केहु बाँचत पुस्तक मोट लखे त बूझे कि मनो हरि भक्त हईं।
पहरा पर बाग का देखि बुझे मनो लोभ से ग्रस्त हईं॥
सब मूरख लोग बुझे हम के मनो मूरख एक महान हँईं।
बुधिमान बुझें हमहूँ उनहीं का समान एगो बुधिमान हँईं।
सब मूरख आ बुधिमान का जाँच में मनो कसौटी समान हँईं।
सब आपन रूप लखे हमरे में अत: भगवान समान हँई॥
बिजुली के मिले उपमान अँजोरिया दृष्टि ओ पै परते परते।
कबे दूज या तीज का चाँदनी ऐसन जाति बुता बरते बरते।
कबे राति बनावति पूर्णिमा सी भर राति सदा जरते जरते।
कबे देति बना कुहू तऽ निशि बीते प्रतीक्षा एके करते करते॥
बल में लसे फूलन ताडुका सी छल में जस पूतना के पितियानी।
रजिया अस राज चलावति मन्थरा ऐसन बा पवले बुधिमानी।
विक्टोरिया अइसन पूर्ण स्वच्छंद सुखी जस नूरजहाँ मुगलानी।
बहुरूपिया अइसन रूप बनावे सती जस तारा मँदोदरि रानी॥
दोहा :- फूलन बा सरघा सरिस या बनशुनी समान।
आ करिया नागिन सरिस आ व्याधा के बान॥
(नोट:- कुछ आचार्यगण रूपक के समान उपमा के भी निम्न भेद मनले बाड़ें। लाला भगवान दीन जी के समुच्चयोपमा और कन्हैया लाल जी के सावयवा मालोपमा एक समान बा)
सावयवा और निरवयवा मालोपमा
लक्षण (हरिगीतिका) :-
वर्ण्य के कुछ अंग भी जब वर्ण्य बनल देखात बा।
और अंग अवर्ण्य के ओकर सुहात बा॥
मालोपमा कवि लोग के तब बनत सावयवा उहाँ।
उपमा न अंगन के लगे तब रहत निरवयवा तहाँ॥
सावयवा मालोपमा
उदाहरण :- लोकतंत्र में शाख सम पार्टी कई देखात।
एमेले एम्पी फल मधुर भाग्यवान सब खात॥
अपने से ओह गाछि पर ना केहु से चढि़ जाय।
जब तक लाखन लोग मिलि देत न हाथ लगाय॥
जे तरु पर चढि़ जात ऊ पाँच बरिस फल खात।
भुइयाँ वाला लोग सब बनि भकुवा रहि जात॥
निरवयवा मालोपता
उदाहरण :-
बान्ह के तूरि यथा जलराशि ओपार मही पर जा मढि़ जाले।
तूरि के गाछिन के जस आन्ही अकास में धूलि ले के चढि़ जाले।
फोरि के घोर घटा घन के बिजुली बिनु रोक यथा कढि़ जाले।
तैसहिं घेरा पुलीस के तुरि के फूलन आगे मुहें बढि़ जाले॥
सवैया :- जलचारिन में घरियारिन सी थलचारिन में सही सिंहिनि खान बा।
बिषधारिंन में लसे नागिन सी डसते-डसते हरि लेति जे प्रान बा।
सब गोलिन में एल जी असि लागति जेकर शक्ति असीम समान बा।
अरि ऊपर फूलनदेबी बिहीन मयान तनी तलवार समान बा॥
समुच्चयोपमा अलंकार
लक्षण (सार) :- कई धर्म में समता भइले उपमा जहाँ दियाला।
तहाँ समुच्चय नामक एगो उपमा अलग कहाला॥
या
कुछ कविन द्वारा समुच्चय नाम के उपमा कहात।
संक्षेप में लक्षण समुच्चय के हवे आगे दियात॥
एक ही उपमेय हो आ एक ही उपमान हो।
धर्म या गुण कई दूनूँ के परंतु समान हो॥
उदाहरण (दोहा) :-
परि परि पाँव प्रवेश पा तब हो मद में चूर।
नाधि देत हड़ताल हठि छात्र यथा मजदूर॥
निष्ठुरता आ नारिपन आ पुरुषार्थ महान।
काली जी अस फूलनो तीनूँ गुण के खान॥
नाम रूप भयप्रद दुओ तेपर करिया गात।
काली जी अस फूलनो के सब चरित सुहात॥
फूलन देवी लसति पुनि श्री सरस्वती समान।
द्वेष दुओ से इन्दिरा राखति मन में ठान॥
हँस सवारी रहत जस निशि दिन उनका पास।
हँससुता के गोद तस इनके रहत निवास॥
पोथी उनका हाथ तस पोथी इनका साथ।
उनका बीन सरिस इहाँ बीन बा हाथ।
उहाँ भक्त जस सुकवि तस इहाँ दस्यु बलवान।
दुओ भक्त जाले उहें जहाँ धनिक यजमान॥
माइक बंशी स्वर सुना हरि के ज्ञान गुमान।
जनता के मोहित करत नेता कृष्ण समान॥
सवैया :-
रचि देत घरौंदा के सृष्टि स्वत: अपने मने ओके समोद मिटावत।
निज लाभ आ हानि स्वयं समुझें आ करें उहे जे अपना मने भावत।
केहु का प्रति शत्रु या मित्र के भाव कबे जेकरा मन में नहीं आवत।
उहे बालक निस्पृह आ निकलंक विधाता समान धरा पर आवत॥